तुम्हीं से सुबह,
तुम्ही को शाम समझ बैठा हूँ,
गलतफहमी का आलम तो देखिए,
बेरोजगारी के इस दौड़ में,
मोहब्बत को काम समझ बैठा हूँ।
खाली जेब मोहब्बत में
कुछ तो हों चंद सिक्के
मेहबूब को रिझाने के लिये
मोहब्बत बेरोजगारी कहां देखती है
मोहब्बत मेहबूब की जेब देखती है।
सोचा था तेरे संग
रातों को तारे देखेंगे,
वो ज़ीरो वाट के बल्ब में
गाने पुराने सुनेंगे,
फिर दिन भर की भागदौड़ ने
रातों का प्लान बदल दिया…. ।
घर के बर्तन बेच कर
हम उनके लिए समोसे कचोरी ले गए,
वो भी खा पीकर
हमारे हाथ में खाली कटोरी दे गए।
बेरोजगारी है तो कोई भी नहीं पास,
फिर फोकट की नसीहत देते हजार,
इश्क़ आशिकी तभी पूछें जब हों पैसे लाख…।
बेरोजगारी में जो इश्क़ था,
रोजगारी वाले इश्क़ से ज्यादा ठीक था,
के थी मोहब्बत वो भी सच्ची वाली
अब वाले इश्क़ में तो सिर्फ़ बटुए खाली होने का रिस्क था।
कौन कहते हैं कि “लोग”
नौकरी की तलाश में बेरोजगार बैठे हैं… पीछे मुड़कर तो देख लो यारों,
नौकरी से ज्यादा….
इश्क़ के बेरोजगार बैठे हैं।
वो रोज नयी वेकेंसी की तरह सामने से निकल जाती है…..
मैं बेरोजगार की तरह देखता रह जाता हूँ।
बेरोजगारी का आलम है ऐसा, लोग कितना तड़प रहे,
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर
आज ख़ुद ही इस दौर से गुजर रहे हैं,
सरकारें अपनी महिमामंडन का गीत गा रहीं,
डिग्रियां नवयुवकों को बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहीं।
हाये बेरोजगारी……
पतझड़ सी जिन्दगी है, ख्वाब बहार के,
कमाई एक भी नहीं है
और खर्चे हजार के…..
बेरोजगार बेरोजगार सब कहे
पर बेरोजगार होए ना कोई
नौकरी ही सब कुछ नहीं
दूसरे भी रोजगार होए।
बेवफ़ाई की नगरी में मैंने वफादारी निभाई है,
महंगाई के जमाने में मुफ्त का प्यार लुटाया है,
बढ़ती बेरोजगारी है, शायद इस लिए ही,
तूने लोगों का काटने का धंधा चलाया है।
जिसे पाने में पूरी जिंदगी उलझ गयी,
उसे पाकर भी लोग उदास बैठे हैं
हाथों में डिग्रियों के बंडल होते हुए भी,
आज लोग बेरोजगार बैठे हैं।
इतना तो अच्छा नहीं है वो,
ना जाने उसने फिर मुझे क्यों छोड़ा है।
ओ…. अच्छा…. सरकारी नौकरी है उसके पास
इसलिए मेरी आशिकी ने दम तोड़ा है।
बेरोजगार हो गए सांप अब,
रिश्तेदार काटने लगे हैं….
कुत्ते क्या करें जब,
तलवे इंसान चाटने लगे हैं…..
रोया इतना उनके आगे,
उनको अपना बनाने के लिए….
जैसे कोई बेरोजगार रोता है,
नौकरी पाने के लिए…।
बेरोजगार पूछता है
कि अभी और जियूँ
या उम्मीदों के नीचे दब जाऊँ
डिग्रियों को फेंक दूँ या
उसकी चिता जलाकर मर जाऊं।
हर तरफ बेरोजगारी छाई है,
फिर भी आंकड़े में स्वरोजगारी है
सोच रही हूँ पढ़- लिख कर बेचूं पकौड़े,
जागो, उठो, लड़ो दोस्तों अब बात साख पे बन आई है।
इस बेरोजगारी को देखकर,
हम बेरोजगारी पर फिदा हो गए
महबूब ने मांगी सोने की कोई अमानत,
हम तकिया देकर गजब कर गए।
मैं जिन्दगी कहूँ, तुम बर्बाद समझ लेना,
मैं स्नातक कहूँ, तुम बेरोजगार समझ लेना,
खाली है जेब मेरी आज, माँ बाप पे बोझ बन चुका हूं,
तुम ये बात समझ लेना,
मैं जिन्दगी कहूँ, तुम बर्बाद समझ लेना… ।
जिसको बनना था अभियंता वो बन बैठा है किसान,
ये वक़्त का है तकाजा और बेरोजगारी का है निशान,
जहाँ प्रतिभा पलायन करने को बनाया गया संविधान, वहां बुद्धिजीवियों को मिलना बहुत मुश्किल है सम्मान.. ।
सिसक सिसक कर रोते हैं रातों को
वो प्यार नहीं मजबूरी है,
दिन में चाँद देखते हैं वो
अंधे नहीं आज ऐसी उनकी हालत है।
तुम्हें फुर्सत नहीं
क्योंकि हम जो बेरोजगार ठहरे
मेरे पास क्या है, तुम्हारी यादों की सिवा
तुम यूँ ही नजरअंदाज करते रहो
निकम्मी यादों कि औकात ही क्या है।
जो दिन हमारी घोर दरिद्रता के थे
वही हमारे प्रेम करने के भी थे
एक खाली जेब आशिक का दर्द
हमारी ही बिरादरी के के कुछ आशिक बखूबी समझते थे,
दुनिया की नजर में भले ही हम
फुर्सतिया थे पर हम
प्रेम की एक उद्दात अनुभूति को जी रहे थे,
फिर भी बेरोजगारी में इश्क़ था ये दोस्त
खाली जेब उससे मिलते और
भरे मन वापस लौट आते।
मैं ना कोई शायर हूं, ना कोई कवि हूं, ना कोई लेखक हूँ,
बेरोजगारों की लाइन में खड़ा एक अदना सा सेवक हूं ।
आधे से कुछ ज्यादा है,
पूरे से कुछ कम,
कुछ जिन्दगी,
कुछ गम…
थोड़ा इश्क़..
थोड़े हम…. ।
देश के युवा पर थोड़ा सा भार चाहिए
बेरोजगार हैं साहब उन्हें रोजगार चाहिए।
जेब में पैसे नहीं हैं डिग्री लिए फिरते हैं
दिनोदिन अपनी ही नजरों में गिरते हैं
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए।
बेरोजगार हैं साहब उन्हें रोजगार चाहिए।
टेलेंट की कमी नहीं है भारत की सड़कों पर
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन सड़कों पर
लिखते- लिखते मेरी कलम तक घिस गयी
नौकरी कैसे मिले जब नौकररी ही बिक गयी
नौकरी कि प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए
बेरोजगार हैं साहब उन्हें रोजगार चाहिए ।
अंधेरों में घिरा रोशनी की तलाश में हूं,
टूट कर बिखरा हूं फिर भी खड़े होने की आश में हूं
घूरती निगाहों के सवालों के जवाब कि तलाश में हूं,
हार चुका हूं ख़ुद से फिर भी एक जीत कि आश में हूं,
मैं एक बेरोजगार, बस एक रोजगार की तलाश में हूँ।
यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वो आज कल
वह डकैती नहीं डालता
वह तस्करी नहीं करता
वह हत्याएं नहीं करता
वह फरेबी वादे नहीं करता
वह देश नहीं चलाता
फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वो आज कल.. ।
जहां देखो इश्क़ के बीमार बैठे हैं
हजारों मर गए लाखों तैयार बैठे हैं
करके जिन्दगी बर्बाद लड़कियों के पीछे
फिर बोलते हैं बेरोजगार बैठे हैं।
तू साथ रह जिस दिन चमकुंगा ना, उस दिन जमाना देखेगा, आज बस बेरोजगार हूं,
तुझे दुनिया की सैर कराऊँगा, अपने हाथों में तेरा हाथ लेकर,
बस मजबूरी है के आज बेरोजगार हूं।
फिर से करारी हार के बाद
वो लोग मुझसे बिछड़ने लगे हैं
जो नहीं थे कभी छोड़ने को तैयार
वह भी नफरत से घुड़ने लगे हैं
कविता- शायरी- गीत- गजल
तंग करके मुझसे जुड़ने लगे हैं
बेरोजगारी पर ताना – डांट सुन
अब कान से खून बहने लगे हैं।
क्या कहें साहब ये बेरोजगारी का जमाना है,
यहाँ तो हर युवा रोजगार का दीवाना है,
क्यों वो आज अपनी मंजिल की जगह फांसी के फंदे को प्यारा है,
कहने को तो वो अपने घर का राज दुलारा है।
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