“मुझसे नहीं हो पायेगा! मैं नहीं कर पाऊंगा !! सुनो, तुम यहीं रूक जाओ, ना मेरे पास.. मुझे हिम्मत देने के लिए “, वो मुझसे उस काम में मदद मॉंग रहा था, जिसे करने में तो मुझे दो पल की भी देर नहीं लगी पर उसके बाद सोचने के लिए जिंदगी भी बची ही कहॉं .. मैं उससे क्या कहूं, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, अगर कहूंगी कि सब ठीक हो जाएगा तो पक्का कहेगा, ” ये तुम खुद से भी तो कह सकती थी ! नसीहते देना बंद करो, मेरी मदद करो !! “, वो बहुत ही चालाक है, मेरी हर बात को काट देता है, जैसे अपने पिछले जन्म में कोई माली था, जो छॉंट-छॉंटकर अपने पंसदीदा फूलों के पास से बेकार घास-फूस को निकाल फेंकता है, ठीक उसी तरह जब भी कभी उसे दिखता है कि मैं कुछ सही बोलने की बजाय बात को टहला-फुसला रही हूं तो वो मुझे टोक देता है!!
“क्या सोचने लगी, बताओ, ना कैसे अपनी ऑंखों को बंद करूं, ताकि जब ऑंखों को खोल सकूं तो सिर्फ और सिर्फ तुम दिखायी दो, मुझे नहीं देखना ये जमाना! “,वो बार बार अपनी ऑंखों को ढकने की कोशिश कर रहा है, पर मैं उससे कैसे कहूं कि उस वक्त मुझे मेरी ऑंखों को बंद करने की जरूरत महसूस ही नहीं हुई थी, दिल में अपनी पैठ जमा चुका अधेंरा ही काफी था, उस अधेंरी रात में मुझे उम्मीद की रोशनी की एक झलक ना देने के लिए ! मैंने हिम्मत करके उससे कहना चाहा, ” सुनो, मैं यहॉं हूं, ना ! मैं कहॉं जा रही हूँ, तुम्हारी सॉंसों के साथ अपने कदमों की चाल मिलाने के लिए, जरा मुड़कर तो देखो इस अधेंरी रात में भी कितनी रोशनी है ! वो देखो दिवाली की रात तुमने ही तो यहॉं इस छत की मुंडेर पर ये जगमगाती लाइट्स लगायी थी, कितनी-कितनी रोशनी है, यहॉं!! “,
वो हर बार की तरह मेरी बात को काटते हुए बोला, “पर तुम्हें क्यों नहीं दिखी मेरी ये मेहनत ! तुम्हें क्यों नहीं दिखी मेरे प्यार की उम्मीद भरी रोशनी ? बस, तुम तो मुझ ये बताओ कि कैसे इस खाई की दूरी को भूलकर कूद जाऊं, आखिरी सॉंस के लिए? पता नहीं, क्यों आज ही डर लग रहा है, मेरा हौसला कहीं मुझसे ही पीछे छूट रहा है ?!”, मुझे समझ ही नहीं आ रहा है, उसका से ये कैसा डर है कि उसे वहीं चीज करने पर मजबूर कर रहा है!
जब मैंने उससे यहीं बात कहीं तो वो दीवार पर अपने कॉंपते हुए पैरों से चढ़ते हुए बोला, “,कुछ इस तरह ही कॉंप जाते थे, तुम्हारे कदम जब मैं तुम्हें किसी महल की दीवार पर चढ़ने के लिए कहता था, मैं तो चाहता था कि तुम उस गहराई से पैदा होने वाले अपने डर पर काबू पा लो, पर मुझे ही कहॉं पता था मैं अपनी मोहब्बत को अपने ही हाथों से एक गहरी खाई में धक्का दे रहा हूं, क्या उस वक्त एक पल के लिए भी तुम्हारे पैर नहीं डगमगाये थे, क्या उस वक्त तुम्हें मेरे हौसले की जरूरत नहीं पड़ी थी ?! “, वो किसी भी वक्त अपने डर पर काबू पाकर कूद सकता था, वो किसी भी वक्त उस अधेंरी रात में ना जाने कितनी ही ऑंखों की रोशनी को भुलकर अपनी जिंदगी को खत्म कर सकता था, वो किसी भी वक्त जालिम जमाने की नफरत की ऑंधी में उड़कर मेरी बॉंहों में मेरे समा सकता था..
मुझे याद आ रहा था, कुछ वक्त पहले मैंने ही तो उससे हमारे प्यार के सबूत मॉंग थे, पूछा था उससे” आखिर कितना प्यार करते हो, मुझसे? बताओ, कर सकते हो अपनी आखिरी सॉंस मेरे नाम?! “,उस वक्त ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे सवालों ने मुझे ही मेरी नजरों में गिरा दिया हो! वो अपना आखिरी कदम उठाने वाला ही था, कि मैंने उसे रोका, पीछे खींचा और बचा लिया खुद को, फिर एक बार वहीं गलती करने से रोक लिया खुद को जिसने मुझसे मेरा सबकुछ छीन लिया, एकतरफ मैं रो रही थी, और वो शांत दिख रहा था ! वो शांत था, अपने अन्दर एक तूफान लिये हुए, जैसे ही कुछ कहने को हुआ, मैंने फिर एक बार कायरों की तरह वहॉं से भागना चाहा पर उसने इस बार रोक लिया मुझे! वो कहता गया, मैं सुनती गयी..
“यहीं होता है, ना प्यार! तुमने रोकना चाहा, मुझे रोक लिया..मुझसे तो तुमने वो एक मौका भी छीन लिया, ना ही तुमने उस वक्त को इस प्यार को याद किया, क्या इतना ही कमजोर था, हमारा प्यार ? क्या इतना ही झूठा था, मुझे दिया तुम्हारा आखिरी वादा ? आखिरी इसलिए क्योंकि तुमने ही उसे आखिरी मुलाकात का आखिरी वादा बना दिया! अब पूछ रहा हूँ, डर पर काबू पाने का तरीका, मॉंग रहा हूँ, तुम्हारे पास आने का हौसला तो पीछे हट रही हो, मुझे छोड़ रही हो ?! चाहती क्या हो, तुम “,
उसकी बेबसी का आलम मुझसे कहीं अधिक था, वो जिंदगी जीते हुए भी हर पल मर रहा था, और मैं मरकर भी जिंदगी से प्यार करना चाह रही थी !! मैं गुनाहगार थी, अपराधी थी और वो मेरी मोहब्बत का हारा हुआ शिकार था…
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