लड़के हैं हम रोना नहीं है हमें
बचपन से सिखाया गया है हमें ।
लड़के हैं हम रोना नहीं है हमें ।
हर दम हमें हंसना है हर दम जीतना है हमें ।
बचपन में तो बड़े लाड़ और दुलार से समझाया गया हमें ।
बोझ होगा तुम्हारे कंधो पर एक दिन ।
लेकिन हम ना समझ थे तब हमें लगा किताबो का होगा ।
जिमेंदारियों का भी बोझ होगा ये कभी समझ में ही नही आया हमें ।
अब डर से डर नही लगता ।
अब अंधेरा अच्छा लगता है हमें ।
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अब मुस्कुराया जाता है दुनिया को दिखाने के लिए,
बोझ के दर्द को छुपाने के लिए ।।
एक वक्त था अंधेरे से भागते फिरते थे हम,
आज उसी अंधेरे में सुकून सा मिलता है ।
अब भी बदला ज्यादा कुछ नहीं,
एक वक्त था रोया जाता था अंधेरे में अकेले रहने से ।
अब रोने के लिए अंधेरा ढूंढा जाता है ।
की हमें भी कभी कभी जरूरत होती है कंधे की ।
हर रोज नही मगर कभी खुद को संभालने की ।
कभी कभी सब कुछ छोड़ कर जाने का मन होता है ।
कभी कभी किसी को जोर से गले से लगाकर रोने का मन होता है ।
मगर लड़के हैं हम रो नही सकते ।
कभी हार नही सकते ।
आखिर कब तक ऐसा चलेगा ।
कब तक हम कमज़ोर अकेले रहेंगे,
आखिर कब तक रोने के लिए अंधेरा कमरा ढूंढेंगे ।
आखिर कब तक अपना प्यार हमें ही साबित करना होगा .. ?
आखिर कब तक हमारी अधूरी मोहब्बत की कहनी को
कटवा कर आ गया का tag मिलता रहेगा ।
आखिर कब तक हम ही गलत रहेंगे आखिर कब तक .. ?
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