मैं अक्सर तारों के शहर में घूमने निकल पड़ता हूँ
जहाँ ना औकात दिखती है ना ही
तारों की चमक में किसी की हैसियत
दिन में शहर रंगीन और काफ़ी बड़ा दिखता है
पर रात के अंधकार में इसकी भव्यता
और भी विशालकाय हो जाती है
इस शहर में बोलने को ज़ुबाँ की ज़रूरत नहीं होती
इन तारों में तो एक अलग ही ऊर्जा का प्रभाव है
वो कहते हैं न की ख़ामोशी बोलती-सुनती नहीं
यहाँ तो सब कुछ एक तरँग में बहता सा लगता है
जैसे हँसने को होंठ नहीं रोने को आँसूँ की ज़रूरत नहीं
बस सारी बातें दिल से होती हैं और ख़ामोशी ही इनकी ज़ुबाँ है
वैसे मेरे काफी सारे दोस्त बन चुके हैं यहाँ
दिन के उजाले में मुझे दूर से निहारते रहते हैं सब
पर रात होते ही छुप्पन छुपाई शुरू हो जाती है इनकी
बस ख़ामोशी को ही समझने का हेर फ़ेर है
वरना कुछ लोग यूँही अंधकार से घबरा जाते हैं
और मुझे बेसब्री से इंतेज़ार होती है हर रात
एक नई दुनिया में चले जाने की
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