पल दो पल आकर मेरे संग बिताना तुम हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
तपता जेठ महीना है कब का बीत चला
सावन भी अब कुछ हफ्ता है बीत चला
जाने कब तक रहोगी, तुम बस यादों में
मैं जागूंगा शायद,अब इन तन्हा रातों में
चुपके से आ कर, मुझे गले लगाना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
पल दो पल आकर मेरे संग बिताना तुम,
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
हर एक बूंद, आग की तरह है बरस रहा
तेरी इक झलक पाने को हूँ मैं तरस रहा
है स्याह इतना, फलक भी न दिख पाये
रातों को यह चाँद आसमां में छिप जाये
बन कर चाँद मिरा फिर चले आना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
क्यूँ आज कोई, अपना नज़र नहीं आता
सन्नाटा है बाहर या है मेरे अन्दर सन्नाटा
तार मेरे सितारों के,अब सारे हैं टूट चुके
न जाने सुर रागों से, कब के हैं छूट चुके
जरा हौले वही गीत पुराना दोहराना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
चंचल नदी सी तुम, मैं ठहरा किनारा हूँ
कल भी था तेरा, आज भी मैं तुम्हारा हूँ
जिस्म हीं है बस मेरा, बाकी सब तेरा है
ये शब है तुझसे, तुझसे ही मेरा सवेरा है
निकल के ख़्वाबों से मेरे,चले आना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
पल दो पल आकर मेरे संग बिताना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
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