कहाँ का इश्क़
कैसी मोहब्बत
हम रंज में ही रहते
तो अच्छा होता
वो पहली दफा
तुम हस कर हमसे
मिले थे जो
ए यार हम
खामोश ही रहते
तो अच्छा होता
वो ज़माने से छुपकर
रात भर जाग कर
जो करी ढ़ेरों बातें
गर भींच कर सासें
और दबोच कर तकिया
जो सो गए होते
तो अच्छा होता
तुम एक दिन दिखतें
तो बेचैन हो जाते
इस ज़ोम में के
तुम आओगे मनाने
हम रूठ जाते
गर ये बेवजह का
कोई हक़ न जताते
तो अच्छा होता
वो अपने घरों की
जो रस्में जानी थी
वह सभी वादें जो
मौसमी ठण्ड के स्वेटर
की तरह बुने थे
जो उस वक़्त
यादें न रख
बस हक़ीक़त जी जाते
काश के उस दिन मैंने
तुम्हे महफ़िल में
बुलाया न होता
काश के तुम्हारी
देर तक राह देखने बाद भी
तुम आयी न होती
काश के उम्मीद
टूट जाती
काशी तुम तोहफें में
वो इत्र लाइ न होती
काश के रिश्तें का अपने
कोई नाम न होता
या यु कहो के
बीच हमारे
यार गर कोई
रिश्ता ही न होता
तो अच्छा होता
तो अच्छा होता
तो अच्छा होता
Follow Me Insta – @Emptiness_11
यह भी देखें
- Aaj Socha Thoda Sa Thahar jaun
- Kaise Ho, Ek Arsa Ho Gya
- Bahut Dino Se Ek Khat
- Mera khat tum tak pahuch jaye